
देहरादून: ल्यूमिनेसेंस डेटिंग एक वैज्ञानिक तकनीक है. जिसका इस्तेमाल पुरानी वस्तुओं, मिट्टी या चट्टानों की उम्र मापने के लिए किया जाता है. जिसको लेकर वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालय जियोलॉजी के वैज्ञानिक इसके बेहतर इस्तेमाल पर जोर दे रहे हैं. दरअसल, उत्तराखंड राज्य प्राकृतिक आपदा के लिहाज से बेहद संवेदनशील है जिसमें मुख्य रूप से भूकंप की संभावना एक चुनौती बनी हुई है. ऐसे में वैज्ञानिक ल्यूमिनेसेंस डेटिंग के जरिए तमाम पहलुओं पर चर्चा की. इसको लेकर वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान में “ल्यूमिनिसेंस डेटिंग एवं इसके अनुप्रयोग” विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया. जिसमें तमाम संस्थानों के वैज्ञानिक शामिल हुए.
भूगर्भीय इतिहास को जानने में ल्यूमिनिसेंस डेटिंग की महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. यही वजह है कि वैज्ञानिक ल्यूमिनिसेंस डेटिंग के बेहतर इस्तेमाल पर जोर दे रहे हैं. वहीं ज्यादा जानकारी देते हुए हैदराबाद स्थित सीएसआईआर के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. देवेंद्र कुमार ने कहा कि डेटिंग को तमाम तरह से अनुप्रयोग किया जा सकता है, जिसके तहत जितने भी पुराने एवं ऐतिहासिक चीजें हैं, उनकी वास्तविक उम्र निकला जा सकता है. हालांकि, किसी भी वस्तु की उम्र निकालने के लिए रेडियो कार्बन डेटिंग भी करते हैं, लेकिन वर्तमान समय में ल्यूमिनिसेंस डेटिंग ज्यादा एक्यूरेट समय बता सकती है.
भविष्य के लिहाज से जो भी अनुमान लगाया जाना है उसके लिए पास्ट को जानना बहुत जरूरी है. जिसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यही है कि कोई भी घटना कब हुई है, जिसकी जानकारी पता करने के लिए तमाम तरह की विधियां मौजूद हैं उसी में से ल्यूमिनिसेंस डेटिंग भी एक विधि है. जिसको लेकर वाडिया में वर्कशॉप चल रहा है, ताकि इस बात पर जोर दिया जा सके कि किसी भी प्रक्रिया को जानने के लिए उसको जानना ही जरूरी नहीं है, बल्कि वह घटना कब हुई थी कितनी बार हुई और कब-कब हुई साथ ही भविष्य में कब-कब कितनी बार हो सकती है, यह जानना जरूरी है. इसे जानने के लिए डेटिंग करना पड़ेगा.
डॉ.विनीत गहलोत, डायरेक्टर, वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान
डॉ. विनीत गहलोत ने आगे कहा कि अगर भूकंप के परिपेक्ष में जानना है तो पहले ये जानना पड़ेगा कि कब और कहां आया था. लेकिन इसमें सबसे महत्वपूर्ण पहलू यही है कि पुराना भूकंप कब आया था. नदिया अपना रास्ता बदलती रहती हैं और उनमें जो बड़ी बाढ़ आती है, ऐसे में नदियों में आने वाले सेडिमेंट्स (sediments) को अगर डेट कर पाते हैं तो बाढ़ की फ्रीक्वेंसी और बाढ़ आने बारंबारता के बारे में जानकारी ले सकते हैं.
इसी तरह जब सुनामी आती है तो सुनामी आने के बाद जो सेडिमेंट्स आसपास डिपॉजिट हो जाते हैं. उनका डेट कर कब-कब सुनामी आई है, इसके फ्रीक्वेंसी की जानकारी निकाल सकते हैं. इसके अलावा, पूर्व में अर्थक्वेक कब-कब आए हैं, इसकी वास्तविक डेट को निकाला जा सकता है. साथ ही बताया कि मौसम अर्ग रहेगा, शुष्क रहेगा, आइस एज, समुद्र तल की ऊंचाई के बढ़ने और घटना समेत तमाम चीजों का सेगमेंट आर्काइव से ही ल्यूमिनिसेंस डेटिंग के जरिए आयु निर्धारण कर अंदाजा लगाया जा सकता है.
रेडियोकार्बन डेटिंग पहले डेवलप हुई है, ऐसे में पहले उसका प्रयोग अत्यधिक लोग किया करते थे. लेकिन कार्बन डेटिंग के लिए जो सैंपल लेते थे उसमें कार्बन का प्रेजेंस होना अनिवार्य होता है, तभी उस वस्तु की डेट का पता चल पाता है. लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता है कि सैंपल में कार्बन का प्रेजेंस हो, यानी कार्बन डेटिंग के लिए सूटेबल पदार्थ मिल जाए, बल्कि सेडिमेंट हर जगह मिल जाते हैं. यही वजह है कि ल्यूमिनिसेंस डेटिंग विधि का ज्यादा प्रयोग किया जा रहा है. साथ ही बताएं कि रेडियोकार्बन डेटिंग से ज्यादा सटीक उम्र का पता चलता है. लेकिन कई बार जब कार्बन डेटिंग के लिए सूटेबल सैंपल नहीं मिल पाता है तो उसे उम्र का सही पता नहीं लग पाता.
डॉ. देवेंद्र कुमार, वैज्ञानिक, सीएसआईआर, हैदराबाद
साथ ही बताया कि रेडियो कार्बन डेटिंग विधि के जरिए अधिकतम 40 से 50 हजार साल तक की वस्तुओं को ही डेटिंग किया जा सकता है. जबकि ल्यूमिनिसेंस डेटिंग विधि के जरिए 150 हजार साल तक की वस्तुओं को डेटिंग किया जा सकता है. इसके अलावा कुछ ऐसी तकनीकी भी विकसित की जा रही है जिसके जरिए 800 हजार से 1000 हज़ार साल तक की वस्तुओं की डेटिंग की जा सकेगी.


