Tuesday, December 16, 2025
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उत्तराखंड में भूतापीय ऊर्जा से बनेगी बिजली, जियोथर्मल एनर्जी पॉलिसी को मिली मंजूरी, जानिए खासियत

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देहरादून: उत्तराखंड सरकार प्रदेश के उच्च हिमालय क्षेत्र में मौजूद जियोथर्मल स्प्रिंग्स के जरिए ऊर्जा उत्पादन पर जोर दे रही है. जिसके तहत राज्य सरकार ने आइसलैंड की वर्किस कंपनी के साथ 17 जनवरी 2025 को एमओयू भी साइन किया था. इसी क्रम में, 9 जुलाई 2025 यानी बुधवार को हुई धामी मंत्रिमंडल ने उत्तराखंड राज्य की पहली उत्तराखंड जियोथर्मल एनर्जी पॉलिसी 2025 को मंजूरी दे दी है. इस पॉलिसी का मुख्य उद्देश्य जियोथर्मल रिसोर्स और उसकी क्षमता को चिन्हित करने के साथ ही अन्वेषण (एक्सप्लोरेशन) के लिए वैज्ञानिक और तकनीकी रिसर्च को प्रोत्साहित करना है.

उत्तराखंड में ऊर्जा उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं. यही वजह है कि राज्य सरकार हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स के साथ ही सोलर एनर्जी और जियोथर्मल एनर्जी प्रोजेक्ट्स पर भी विशेष जोर दे रही है. राज्य के उच्च हिमालय क्षेत्रों में 40 चिन्हित जियोथर्मल स्प्रिंग्स मौजूद हैं. ऐसे में सरकार, प्रदेश में मौजूद जियोथर्मल स्प्रिंग्स को जियोथर्मल एनर्जी के रूप में तब्दील करना चाहती है. जिसके तहत उत्तराखंड सरकार, आयरलैंड की एक निजी कंपनी वर्किस के साथ 17 जनवरी 2025 को पहले ही एमओयू साइन कर चुकी है. इसके साथ ही अब उत्तराखंड सरकार ने प्रदेश में जियोथर्मल एनर्जी को बढ़ावा देने के लिए जियोथर्मल एनर्जी पॉलिसी भी तैयार की है, जिसे मंत्रिमंडल से मंजूरी मिल गई है.

उत्तराखंड भू-तापीय ऊर्जा नीति 2025 का उद्देश्य: आर्थिक और पर्यावरणीय व्यवहार्यता (एनवायरमेंटल फिजिबिलिटी) को देखते हुए जियोथर्मल रिसोर्सेज एवं उनकी कैपेसिटी को चिन्हित करने, अन्वेषण (एक्सप्लोरेशन) के लिए वैज्ञानिक एवं तकनीकी अनुसंधान (टेक्निकल रिसर्च) को प्रोत्साहित और समर्थन प्रदान करना है. प्रदेश में चिन्हित जियोथर्मल एनर्जी स्थलों का विकास और इस्तेमाल के प्रति प्रोत्साहित करना है. जियोथर्मल एनर्जी को विद्युत उत्पादन, हीलिंग एवं कूलिंग सिस्टम में यूज, वाटर ट्रीटमेंट और सामुदायिक विकास में इस्तेमाल के लिए बढ़ावा देना है. ऊर्जा आपूर्ति में विविधीकरण (डाइवर्स फिक्सेशन ऑफ एनर्जी सप्लाई), कार्बन उत्सर्जन में कमी और राज्य के दीर्घकालिक पर्यावरणीय और ऊर्जा लक्ष्यों में योगदान देकर राज्य की ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाना है.

जियोथर्मल एक्सप्लोरेशन के लिए बनाई जाएगी R&D केंद्र: उत्तराखंड जियोथर्मल एनर्जी पॉलिसी की अधिसूचना जारी होने के बाद उत्तराखंड राज्य में लागू हो जाएगी और ये पॉलिसी प्रदेश की सभी जियोथर्मल परियोजनाओं पर लागू होगी. जियोथर्मल एनर्जी पॉलिसी के अनुसार, ऊर्जा विभाग, उत्तराखंड सरकार, उरेडा (उत्तराखंड रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी) और यूजेवीएनएल कार्यान्वयन (इम्प्लीमेंटिंग) एजेंसी के रूप में योजना, परियोजना आवंटन, वैधानिक मंजूरी और नीति संशोधनों का कार्य करेंगे. जियोथर्मल एक्सप्लोरेशन के लिए अनुसंधान एवं विकास केंद्र बनाया जाएगा, जो संसाधन मूल्यांकन और व्यवहार्यता सुधार (रिसोर्स असेसमेंट एंड फिजिबिलिटी इम्प्रूवमेंट) के लिए काम करेगा.

सिंगल विंडो सिस्टम के तहत 8 हफ्ते के भीतर अनुमति: जियोथर्मल एनर्जी प्रोजेक्ट्स का आवंटन, सीपीएसयू/एसपीएसयू को नामांकन के आधार पर और निजी कंपनियों को प्रतिस्पर्धी बोली के जरिए की जाएगी. अन्वेषण और विकास के लिए डेवलपर का चयन ईओआई (एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट) के जरिए की जाएगी. डेवलपर्स को जगह आवंटित करने के बाद 1 साल के भीतर एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) प्रस्तुत करनी होगी. डेवलपर्स को 30 सालों के लिए 50 फीसदी भूमि मार्गाधिकार (राइट ऑफ वे) प्रदान किया जाएगा. बाकी भूमि सरकारी दरों पर पट्टे पर दी जाएगी. अन्वेषण और टोही सर्वेक्षण (एक्सपलोरेशन एंड रिकोननासैंस सर्वेसेज) के लिए 50 फीसदी तक वित्तीय सहायता दी जाएगी. स्थानीय क्षेत्र विकास निधि और रॉयल्टी बिजली शुल्क से छूट दी जाएगी. सिंगल विंडो सिस्टम के तहत 8 हफ्ते के भीतर अनुमति देने का प्रावधान है.

जियोथर्मल एनर्जी पॉलिसी के अन्य बिंदु:

  • परियोजनाओं को मंजूरी मिलने के 4 सालों के भीतर शुरू करना होगा. परियोजना में फेल होने पर प्रोजेक्ट को निरस्त या दंड का प्रावधान होगा.
  • 30 सालों के लिए प्रोजेक्ट का आवंटन किया जाएगा. साथ ही प्रोजेक्ट शुरू होने के बाद 10वें, 15वें, 20वें और अंतिम साल में अनिवार्य रूप से निरीक्षण किया जाएगा.
  • राज्य सरकार को यूईआरसी (उत्तराखंड इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन) की ओर से तय दरों पर परियोजना क्षमता का 80 फीसदी तक खरीदने का अधिकार है.
  • डेवलपर्स को स्टेट ट्रांसमिशन नेटवर्क से जोड़ने और इससे संबंधित इन्फ्रास्ट्रक्चर के खर्च को वहन करना होगा.
  • वाणिज्यिक संचालन तिथि (कमर्शियल ऑपरेशन डेट) के बाद और प्री कमर्शियल ऑपरेशन डेट के ट्रांसफर के लिए राज्य सरकार से अनुमति लेनी होगी.
  • किसी भी विवाद में राज्य सरकार की ओर से जारी दिशा निर्देश फाइनल होगा. जिसमें हितधारकों की सुनवाई के अवसर भी शामिल हैं.
  • केंद्रीय/राज्य अधिनियमों, नीतियों या विनियमों में दिए गए शर्तों का पालन करना होगा.
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