
- देहरादून का 150 साल पुराना आढ़त बाजार अब देहराखास पटेलनगर में स्थानांतरित होगा। कभी यह बाजार शहर की आर्थिक गतिविधियों का केंद्र था, जहाँ अनाज और मसालों का व्यापार होता था।
- ब्रिटिशकाल में स्थापित, यह बाजार ‘शहर-गेटवे ट्रेड हब’ के रूप में जाना जाता था। अब, यातायात को सुगम बनाने के लिए इसे स्थानांतरित किया जा रहा है, और एमडीडीए द्वारा नए बाजार का निर्माण किया गया है।
देहरादून: कभी जिस आढ़त बाजार में भोर होते ही बैलगाड़ियों की खड़खड़ाहट, अनाज की बोरियों का करघा-महल, व्यापारियों की बोली लगाती आवाजें और घंटियों की गूंज सुनाई देती थी, वह अब शहर के यातायात को सुगम बनाने के लिए अपना ‘बलिदान’ देने जा रहा है।
करीब 150 साल पुराना देहरादून का गांधी रोड स्थित ब्रिटिशकालीन आढ़त बाजार अब देहराखास पटेलनगर स्थानांतरित हो रहा है। यह महज व्यापार का केंद्र ही नहीं, ‘यादों का गुलदस्ता’ भी है।
बाजार की तंग गलियों, मसालों की खुशबू और पुरानी इमारतों के बीच अतीत का देहरादून अब भी सांस लेता है।
शहर के बीचोंबीच स्थित आढ़त बाजार दून की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र रहा है। वर्तमान में यह इलाका नए-पुराने व्यापार का संगम बन चुका है।
एक ओर जहां पारंपरिक मसालों, दालों और अनाज की आढ़त चलती हैं, वहीं दूसरी ओर छोटे दफ्तर, वित्तीय एजेंसियां और लाजिस्टिक कंपनियां संचालित हो रही हैं।
समय के साथ दून में आधुनिक बाजार और शापिंग माल चहकने लगे तो आढ़त बाजार की पारंपरिक चमक फीकी पड़ती चली गई।
लेकिन, इसका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व कभी कम नहीं हुआ। आज भी यहां पुराने गोदामों की ऊंची छतें, लोहे के ताले और लकड़ी के दरवाजे उस दौर की याद दिलाते हैं, जब यहां हर लेन-देन ‘भरोसे की मोहर’ से तय होता था।
ब्रिटिशकाल से शुरू हुई परंपरा
आढ़त बाजार की नींव ब्रिटिशकाल के दौरान वर्ष 1880 में पड़ी, लेकिन यह पूरी तरह वर्ष 1910 में तब अस्तित्व में आया, जब देहरादून को ‘हिल स्टेशन गेटवे’ के रूप में विकसित किया जा रहा था।
तब दूनघाटी के गांवों और तराई क्षेत्र से आने वाले कृषि उत्पादों-अनाज, गुड़, मसाले और तिलहन का मुख्य व्यापार यहीं से होता था।
शहर के मुख्य मार्ग, रेलवे स्टेशन, हनुमान चौक व दर्शनी गेट के पास होने से इसे ब्रिटिशकाल में ‘शहर-गेटवे ट्रेड हब’ के नाम भी जाना जाता था।
बोलियों में तय होता था सौदा
पुराने व्यापारिक परिवार के सदस्य राजेंद्र प्रसाद गोयल बताते हैं कि कैसे सुबह-सुबह बैलगाड़ियों में अनाज की बोरियां आती थीं और शाम तक ‘हिसाब-किताब’ चलता रहता था।
75-वर्षीय व्यापारी जसवंत सिंह कहते हैं, ‘बाबूजी के जमाने में यहां हर सौदा बोलियों में तय होता था। व्यापारी की पहचान उसके बोलने के अंदाज और भरोसे से होती थी।’
10 हेक्टेयर में बन रहा नया आढ़त बाजार
मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) ने देहराखास पटेलनगर में 10 हेक्टेयर भूमि पर नए आढ़त बाजार का निर्माण कराया है। पांच मंजिला मल्टीस्टोरी कार पार्किंग व ओवरहेड टैंक का ढांचा बन चुका है। 40 फीट चौड़ी सड़कें आकार ले चुकी हैं।
हरिद्वार बाईपास से आढ़त बाजार के लिए आवागमन करने के लिए दो मार्ग समानांतर रूप से बनाए जा रहे हैं। गांधी रोड से पुराने आढ़त बाजार की शिफ्टिंग के बाद 1.55 किमी सड़क को 24 मीटर तक चौड़ा किया जाएगा।




