Saturday, October 25, 2025
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बिहार में मतदाता सूची संशोधन पर RJD सुप्रीम कोर्ट पहुंची, चुनाव आयोग के फैसले को दी चुनौती

नई दिल्ली/पटना : राजद की ओर से पार्टी सांसद मनोज झा ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर चुनाव आयोग के उस निर्णय को चुनौती दी है, जिसमें आयोग ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण यानी स्पेशल इंटेन्सिव रिविजन (SIR) को तुरंत लागू करने का निर्देश दिया है.

चुनाव से पहले विशेष पुनरीक्षण पर उठे सवाल : चुनाव आयोग ने यह आदेश विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले जारी किया है, जिससे राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है. आरजेडी का कहना है कि ”यह कदम निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है.”

संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन होने का आरोप: मनोज झा ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में दावा किया है कि ”यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करता है.” उनका कहना है कि ”इस तरह के विशेष पुनरीक्षण से कई मतदाताओं के नाम सूची से हटाए जा सकते हैं, जिससे बड़े पैमाने पर नागरिकों के वोटिंग अधिकार प्रभावित हो सकते हैं.”

सुनवाई की उम्मीद में आरजेडी : याचिका में सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई है कि चुनाव आयोग के आदेश पर रोक लगाई जाए और इस पूरे मसले की विस्तृत सुनवाई की जाए. पार्टी ने भरोसा जताया है कि न्यायालय से उन्हें निष्पक्ष सुनवाई मिलेगी.

क्या है विवाद? : चुनाव आयोग ने बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले मतदाता सूची का विशेष सघन पुनरीक्षण शुरू करने का आदेश दिया है. आयोग का तर्क है कि इससे मतदाता सूची को अद्यतन करने और फर्जी या दोहरे नामों को हटाने में मदद मिलेगी.

आरजेडी का आरोप काटे जा सकते हैं नाम : हालांकि, राष्ट्रीय जनता दल ने इस कदम पर आपत्ति जताई है. पार्टी का कहना है कि यह आदेश चुनावी प्रक्रिया में हस्तक्षेप की तरह है और इससे वोटर लिस्ट में बड़े पैमाने पर नाम काटे जा सकते हैं, जिससे खास समुदायों और क्षेत्रों के मतदाताओं को नुकसान हो सकता है.

EC का फैसला असंवैधानिक-RJD : राजद सांसद मनोज झा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दावा किया है कि चुनाव आयोग का यह फैसला मनमाना, गैर-जरूरी और असंवैधानिक है. उनका आरोप है कि इससे लोकतंत्र और स्वतंत्र चुनाव की भावना को ठेस पहुंचती है.

‘चुनावी लाभ के लिए लिया गया फैसला’ : आरजेडी ने सवाल उठाया है कि जब नियमित पुनरीक्षण की प्रक्रिया पहले से ही तय है, तो चुनाव से ठीक पहले इस तरह के ‘विशेष’ पुनरीक्षण की क्या आवश्यकता थी? पार्टी को आशंका है कि इसका उपयोग चुनावी लाभ के लिए चुनिंदा मतदाताओं को हटाने के लिए किया जा सकता है.

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